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Hindi Nibandh For Class 10

Hindi Nibandh For Class 10: हिंदी निबंध 10वी 2024 बोर्ड परीक्षा में ये 10 निबंध पूछा जाएगा।

Hindi Nibandh For Class 10: कक्षा 10वीं बोर्ड परीक्षा 2024 में शामिल होने वाले सभी छात्र / छात्रा किए 10 महत्वपूर्ण हिंदी निबंध इस लेख में बताया गया है, जो की आपके बोर्ड परीक्षा के लिए काफी कारगर साबित होगा।

इस लेख में, जानेंगे कक्षा 10वीं बोर्ड परीक्षा 2024 के लिए वे कौन से 10 सबसे महत्वपूर्ण निबंध है, जो इस साल के बोर्ड परीक्षा में पूछा जाएगा। 

Hindi Nibandh For Class 10
Hindi Nibandh For Class 10

Hindi Nibandh For Class 10 – Overall 

कक्षा का नाम 10वीं 
लेख का नाम Hindi Nibandh For Class 10th
किस बोर्ड के बच्चों के लिए है ? कक्षा 10वीं में पढ़ रहे, सभी बोर्ड के बच्चों के लिए है।
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Hindi Nibandh For Class 10 –  हिंदी निबंध 10वी 2024 बोर्ड परीक्षा के लिए

कक्षा 10वीं बोर्ड परीक्षा 2024 में शामिल होने वाले सभी छात्रों के लिए 10 महत्वपूर्ण निबंध (Hindi Top VVI NIbandh) निम्नलिखित हैं। 

  1. प्रदूषण / प्रदूषण की समस्या तथा समाधान
  2. खेल का महत्व
  3. दशहरा / विजय दशमीं / दुर्गा पूजा
  4. मेरे प्रिय कवि / लेखक
  5. छात्र और राजनीति
  6. अनुशासन 
  7. पर्यावरण 
  8. वसंत ऋतु
  9. दीपावली
  10. महंगाई

प्रदूषण / प्रदूषण की समस्या तथा समाधान 

प्राकृतिक संपदाओं की निर्मम एवं अविवेकपूर्ण लूट के कारण आज सारा संसार प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है। अदूरदर्शिता और अज्ञानता के कारण मानव पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई कर रहा है। भारत में प्रतिवर्ष स्विट्जरलैंड से तिगुने बड़े क्षेत्र का जंगल क्रूरतापूर्वक विनष्ट किया जा रहा है। विश्व से लगभग पच्चीस हजार वनस्पति की प्रजातियाँ समाप्त हो गई हैं। वनस्पति-जगत के इस विनाश के मानवजाति को विनाश के कगार पर ला खड़ा किया है। प्रदूषण की समस्या समस्त मानव-समाज के समक्ष चुनौती है। इसके साथ मानव-समाज के जीवन-मरण का प्रश्न जुड़ा हुआ है। उद्योगीकरण प्रदूषण का मुख्य कारण हैं। इसके चलते जल, थल, वायुमंडल सब प्रदूषित होते रहते हैं। प्रदूषण के मुख्य रूप हैं- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, रासायनिक प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण।

प्रदूषण अंतरराष्ट्रीय समस्या है। इस समस्या के निदान के लिए संसार के वैज्ञानिकों को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। प्रकृति के लिए डब्ल्यू डब्ल्यू०एफ० (विश्वव्यापक कोष) ने 1986 में अपनी रजत जयंती समारोह (सिसली में) के अवसर पर दुनिया से अपील की थी कि हम अपने जीवन-सहयोगी पेड़-पौधों को नष्ट होने से रोकें। आज डब्ल्यू डब्ल्यू०एफ० पौधा-संरक्षण कार्यक्रम विश्वभर में सुचारु रूप से चल रहा है। इस कार्यक्रम के तहत विश्व के एक सौ तीस देशों में चार हजार परियोजनाएँ प्रारंभ की गई हैं। ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ नामक परियोजना को अपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। वायु एवं जल प्रदूषण को रोकने के लिए वनों के कटाव पर रोक लगानी होगी तथा कटे हुए वनों को पुनः हरे-भरे वनों में परिवर्तित करना होगा। जल प्रदूषण से बचने के लिए यह आवश्यक है कि दूषित जल को जमीन के बहुत नीचे शोषित कराया जाए। वाहनों में साइलेंसरों का प्रबंध कर हम ध्वनि प्रदूषण से बच सकते हैं। लाउडस्पीकरों का उपयोग पूर्णतः प्रतिबंधित होना चाहिए। रासायनिक प्रदूषण से मुक्त रहने के लिए आवश्यक है कि कल-कारखाने बस्तियों से दूर लगाए जाएँ। शहरों और महानगरों में मल-जल की निकासी का अच्छा प्रबंध होना चाहिए। प्रदूषण से पर्यावरण की रक्षा करना मानव-अस्तित्व की रक्षा करना है।

‘पर्यावरण’ व्यापक शब्द है। इस शब्द से हमारे चारों तरफ के वातावरण का बोध होता है। हमारे चारों तरफ के वातावरण में मिट्टी, जल, वायुमंडल, जीव-जंतु तथा वृक्ष शामिल हैं। ये सभी एक-दूसरे के पूरक तथा आश्रित हैं। एक का भी नष्ट होना या असंतुलित होना हमारे पर्यावरण को असंतुलित बना देता है। जिस प्रकार मनुष्य के जीवन में शरीर का स्थान है, उसी प्रकार विश्वरूपी मनुष्य का शरीर पर्यावरण है। और, जिस तरह शरीर को नीरोग एवं स्वस्थ एवं कल्याण के लिए पर्यावरण का प्रदूषणमुक्त होना आवश्यक है। अपनी सुख-सुविधा के लिए मनुष्य ने अपने पर्यावरण का आवश्यकता से अधिक दोहन किया है। फलतः, आज पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है।

पर्यावरण को प्रदूषणमुक्त करने के लिए वृक्षारोपण का महत्त्व बढ़ गया है। पेड़-पौधे वातावरण के प्रदूषण को खींचते हैं और धरती के हवा-पानी को शुद्ध रखते हैं। हिंदू धर्म में वृक्षों की पूजा का विधान है। वृक्षों की पूजा के पीछे वैज्ञानिक सत्य छिपा है। वृक्ष पर्यावरण को संतुलित और विशुद्ध करते हैं, अतः ये पृथ्वी के समस्त जीवधारियों के लिए अत्यंत उपयोगी हैं। हमें पेड़-पौधे लगाकर वातावरण को शुद्ध करने में सहायक होना चाहिए।

खेल का महत्व

महर्षि चरक ने शरीर (स्वास्थ्य) को धर्म, अर्थ काम और मोक्ष का मूल आधार माना है। कालिदास ने भी कहा है- “शरीरमाद्यं खलु धर्म-साधनम्” अर्थात् शरीर ही सब धर्मो के आचरण का प्रथम साधन है । शरीर स्वस्थ होगा तो सभी धर्म साधे जा सकते हैं । आज समय में परिवर्तन आ गया है । आज बच्चे उस स्कूल में पढ़ना चाहते हैं जहाँ खेल-खेल में शिक्षा देने का प्रबंध होता है । आज के युग ने खेल के महत्त्व को स्वीकार किया है । लोग खिलाड़ी होने में गौरव का अनुभव करते हैं । खेल कैरियर के साथ जुड़ गया है । किसी ने ठीक ही कहा है-‘पहला सुख नीरोगी काया’ । स्वस्थ शरीर ईश्वर का वरदान है । अतः स्वास्थ्य प्राप्ति के अनेक उपायों में खेलकूद का महत्त्व किसी से कम नहीं है । जीवन तभी पूर्ण होता है जब उसका सर्वांगीण विकास हो। शिक्षा से बुद्धि का विकास होता है तो खेलों से शरीर का ।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है । शारीरिक और मानसिक बल में सुंदर और उपयुक्त संतुलन बनाए रखने का एक मात्र साधन है- ‘खेल’ । खेल हमारे जीवन के सर्वांगीण विकास के साधन हैं । खेल मनुष्य के शारीरिक विकास के सर्वस्वीकृत तथा सर्वमान्य साधन है; साथ ही खेल के मैदान में हंम अनुशासन, संगठन, आज्ञा-पालन, साहस, आत्मविश्वास तथा एकाग्रचित्तता जैसे गुणों को भी प्राप्त करते हैं। जो व्यक्ति अपने में इन गुणों का विकास कर लेता है वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त कर लेता है ।

प्राचीनकाल में कुश्ती, कबड्डी आदि कुछ ही खेलकूद प्रचलित थे । . जबकि आज अनेक प्रकार के खेलकूद प्रचलित हैं । इन्हें देशी और विदेशी दो श्रेणियों में रखा जा सकता है । देशी खेलकूद पूरी तरह से भारतीय हैं । इनमें कबड्डी, शतरंज, चौपड़ आदि प्रमुख हैं। जबकि विदेशी खेलकूद में क्रिकेट, हॉकी आदि हैं। ये खेल दो प्रकार के हो सकते हैं- आउटडोर तथा इनडोर । आउटडोर वे खेल हैं जो घर के बाहर किसी मैदान में ही खेले जा सकते हैं, जैसे-पोलो, टेनिस, हॉकी, क्रिकेट आदि तथा इनडोर वे खेलकूद हैं जिन्हें हम घर में खेल सकते हैं, जैसे-शतरंज, कैरम, टेबिल-टेनिस आदि ।

खेलों से अनेक लाभ हैं । इनसे स्वास्थ्य के साथ-साथ स्वस्थ मनोरंजन भी होता है । खेलों से शरीर चुस्त रहता है, बुद्धि का विकास होता है । सहयोग, मित्रता, मेलजोल, अनुशासन की भावना आदि गुण खेलों में भाग लेने से अपने आप आ जाते हैं । खेलकूद में भाग लेने से खिलाड़ियों में खेल भावना का विकास होता है । खेलों से मनुष्य का चरित्र ऊँचा उठता है । खेल के मैदान में ही अनुशासन का पाठ पढ़ाया जाता है ।

आज देश-विदेश में अनेक स्तरों पर खेलों का आयोजन किया जाता है । राष्ट्रीय, एशियाई और ओलंपिक खेलों का नियमित आयोजन होता है । आज भारत के युवाओं को अपनी रुचि के खेलों में भाग लेना चाहिए । इनसे वे स्वास्थ्य प्राप्ति के साथ-साथ अपने देश का नाम भी उज्ज्वल कर सकते हैं।

दशहरा / विजय दशमीं / दुर्गा पूजा

“सर्वशक्ति महामाया दिव्यज्ञान स्वरूपिणी ।

नवदुर्गे, जगन्मातर, प्रणमामि मुहुर्मुहुः ॥”

भारत को ‘पर्वो का देश’ कहा जाता है। शायद ही कोई महीना हो जिसमें कोई-न-कोई पर्व नहीं मनाया जाता हो । भारत के विभिन्न पर्वो में दुर्गापूजा. का विशिष्ट स्थान है ।

दुर्गापूजा का पर्व आसुरी प्रवृत्तियों पर दैवी प्रवृत्तियों की विजय का पर्व है। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर राम और रावण (सत और असत) की अलग-अलग प्रवृत्तियाँ हैं । इन दो अलग प्रवृत्तियों में निरंतर संघर्ष चलता रहता है । हम दुर्गापूजा इसीलिए मनाते हैं कि हम हमेशा अपनी सप्रवृत्तियों से असप्रवृत्तियों को मारते रहें । दुर्गापूजा को ‘दशहरा’ भी कहा जाता है; क्योंकि राम ने दस सिरवाले रावण (दशशीश) को मारा था ।

दुर्गापूजा का महान् पर्व लगातार दस दिनों तक मनाया जाता है । आश्वि शुक्ल प्रतिपदा (प्रथमा तिथि) को कलश स्थापना होती है और उसी दिन से पूजा प्रारंभ हो जाती है । दुर्गा की प्रतिमा में सप्तमी को प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है । उस दिन से नवमी तक माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना विधिपूर्वक की जाती है। श्रद्धालु प्रतिपदा से नवमी तक ‘दुर्गासप्तशती’ या ‘रामचरितमानस’ का पाठ करते हैं । कुछ लोग ‘गीता’ का भी पाठ करते हैं । कुछ श्रद्धालु हिंदू भक्त नौ दिनों तक ‘निर्जल उपवास’ करते हैं और अपने साधनात्मक चमत्कार से लोगों को अभिभूत कर देते हैं । सप्तमी से नवमी तक खूब चहल-पहल रहती है । देहातों की अपेक्षा ‘शहरों में विशेष चहल-पहल होती है । लोग झुंड बाँध बाँधकर मेला देखने जाते हैं। शहरों में बिजली की रोशनी में प्रतिमाओं की शोभा और निखर जाती है । विभिन्न पूजा-समितियों की ओर से इन तीन रातों में गीत, संगीत और नाटकों के विभिन्न रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं । शहरों की कुछ समितियाँ इस अवसर पर ‘व्यंग्य और क्रीड़ामूर्तियों’की स्थापना करती हैं। इस दिन लोग अच्छा-अच्छा भोजन करते हैं और नए वस्त्र धारण करते हैं । इस दिन नीलकंठ (चिड़िया) का दर्शन शुभ माना जाता है ।

मेरे प्रिय कवि / लेखक

प्रेमचंद हिंदी कथा-साहित्य के सम्राट माने जाते हैं। भारत के इस कथा-सम्राट का जन्म 31 जुलाई, 1880 ई० में तथा निधन 8 अक्टूबर, 1936 ई० में हुआ। उनके पिता का नाम मुंशी अजायब लाल था। वाराणसी के पास लमही गाँव में उनका जन्म हुआ था।

प्रेमचंद का साहित्य समकालीन संदर्भों की कसौटी पर खरा उतरता है। इसका कारण बहुत सीधा-सा है। प्रेमचंद ने जिस भारत का अपनी रचनाओं में चित्रण किया है, वह कमोबेश अब भी वही है। कफन, पूस की रात, ठाकुर का कुआँ, सवा सेर गेहूँ आदि कहानियों में गरीबी में पिसते जिन लाखों गरीबों का सशक्त चित्रण किया गया है, वे अभी भी बिलकुल वैसे ही हैं। गाँवों में जमींदार, साहू, पटवारी तथा गाँव की दुर्व्यवस्था के जिम्मेदार दूसरे छोटे अफसरों द्वारा क्रूर शोषण वाली व्यवस्था अभी भी मूलतः वही है जिसका प्रेमचंद ने अपनी दर्जनों कहानियों और ‘गोदान’ तथा प्रारंभिक उपन्यास ‘प्रेमाश्रम’ में विविधतापूर्वक चित्रण किया है। गाँधीजी के हृदय-परिवर्तन के सिद्धांत को अपनाने से हालाँकि उनकी रचनाओं में आदर्श का रंग गहरा हो गया है, पर वे सभी स्थितियाँ अब भी लगभग वैसी ही हैं। छोटे किसान को कंगाल बना दिया जाना, अपनी जमीन छोड़कर उसका मेहनत-मजदूरी करने बाहर जाना, वह चाहे कारखाने में मजदूर हो या घरेलू नौकर, उसका मन इस कदर पीछे ही भटकता रह जाता है कि मरने के बाद उसकी रूह जमीन के उस छोटे-से टुकड़े पर ही मँडराती रहती है, जो कभी उसकी थी और जिसे वह अपने पास रख नहीं सका। उनके अन्य उपन्यास हैं निर्मला, सेवासदन, रंगभूमि, कर्मभूमि आदि। प्रेमचंद ने लगभग 350 कहानियों की रचना की है, जिनमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक शोषण के चित्रण की स्पष्ट झलक मिलती है।

छात्र और राजनीति

मानव को आदिम स्थिति से उठाकर वर्तमान सभ्यता और संस्कृति के स्तर तक लाने में जिन तत्त्वों का सबसे प्रमुख स्थान रहा है, उनमें अनुशासन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। ‘अनुशासन’ का सामान्य अर्थ है-किसी विधान या निर्देश को मानते हुए उसके अनुसार आचरण करना। ‘अनु + शासन’, अर्थात् शासन के पीछे चलना, नियमों का अनुगमन करना। नियमों की अनुगामिता (पीछे चलना) से जीवन में व्यवस्था आती है और व्यवस्था ही सफलता की कुंजी है।

अनुशासन सामाजिकता को बढ़ावा देता है और व्यक्ति को समाज से जोड़ता है। सूक्ष्मता से विश्लेषण किया जाए तो अनुशासन का संबंध जीवों के नैसर्गिक स्वभाव से है। चीटियाँ, मधुमक्खियाँ, हाथी, पशु-पक्षी आदि समूह में रहना पसंद करते हैं ताकि वे सुगमता से आहार-संग्रह और आत्म-संग्रह कर सके। झुंड में रहना इनके लिए अनुशासन हो जाता है। प्रारंभ में मनुष्य को भी प्राकृतिक अनुशासन में रहना पड़ता था। इसके बाद कृषि-जीवन के आरंभ होने पर परिवार और गाँव अस्तित्व में आए। अनुशासन के दो भेद हैं— बाह्य और आंतरिक । समाज, संस्था, राज्य आदि के नियम वाह्य अनुशासन के अंतर्गत आते हैं। मानव की आंतरिक प्रवृत्तियों को विचारों द्वारा प्रभावित कर निश्चित दिशा की ओर प्रवृत्त करना आंतरिक अनुशासन है। बाह्य अनुशासन उच्छृंखलता पर अंकुश लगाता है और आंतरिक अनुशासन व्यक्ति का आत्मवल विकसित कर उसे (व्यक्ति को) श्रेष्ठता की ओर प्रवृत्त करता है। छात्रों को अनुशासन-प्रिय होना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि वे ही राष्ट्र के भावी कर्णधार हैं। सच तो यह है कि शिक्षकों और गुरुजनों के अनुशासन में रहकर ही छात्र समुचित रीति से विद्या ग्रहण करते हैं और अपने चरित्र को उन्नत बनाते हैं।

अनुशासन

अनुशासन का अर्थ है-व्यवस्था, क्रम और आत्म-नियंत्रण । यह एक ऐसा गुण है जो समय की बचत करता है, धन और शक्ति का अपव्यय रोकता है तथा अतिरिक्त बल पैदा करता है । अनुशासन का मानव-जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

रेल की टिकट खिड़की या बस पर चढ़ने वाले यात्रियों को लें। अधिकांशतः बस पर चढ़ने वाले यात्रियों में धक्का-मुक्की होती है । कभी-कभी एकाध खरोंच भी आ जाती है। यदि बस पर चढ़ने का कार्य अनुशासन से हो जाए तो सभी बस में बैठ जाएँगे और धक्का-मुक्की से उत्पन्न समस्याएँ भी नहीं पैदा होंगी ।

अब मानव-मन की हौच पौच को लें। एक छात्र को एक ही समय पर विवाह की पार्टी में भी जाना है, क्रिकेट का मैच भी खेलना है, दूरदर्शन पर आयी फिल्म को भी देखना है और कल होने वाली परीक्षा की तैयारी भी करनी है । इस अस्त-व्यस्त मनःस्थिति में प्रायः छात्र लटक जाते हैं । वे एक साथ चारों ओर मन लगाकर किसी भी एक कार्य को ध्यान से नहीं कर पाते । यदि कोई छात्र अनुशासन का अभ्यासी हो तो वह अवश्य ही संयम करके चारों के गुण-दोष का विचार करके किसी एक ओर अपना ध्यान लगा लेगा तथा शेष की ओर से अपना मन हटा लेगा । इस हौच पौच मन:स्थिति में से यही एक उत्तम रास्ता है।

अनुशासन से संयम आता है तथा सभ्यता का प्रारंभ होता है। आज की नवीन सभ्यता अनुशासन की ही देन है । ग्रामीण सभ्यता में कोई रहन-सहन का व्यवस्थित तरीका नहीं, बोल-चाल में अनुशासन नहीं, इसलिए वे पिछड़ जाते हैं। दूसरी ओर शहरी सभ्यता में हर चीज की एक व्यवस्था है, बोलने का, कार्य करने में एक नियमित क्रम है, इसलिए आज उसका आकर्षण है ।

• मुट्ठी भर अंग्रेजों ने विशाल भारत को किस प्रकार गुलाम बनाया ? निश्चय ही अनुशासन के बल पर । अनुशासन से शक्तियों का केंद्रीकरण होता है, गतिशील ऊर्जा का जन्म होता है तथा जीवन सहज, सरल और सुंदर बन जाता है ।

पर्यावरण 

‘पर्यावरण’ का शाब्दिक अर्थ है-चारों ओर का वातावरण, जिसमें हम सब साँस लेते हैं। इसके अंतर्गत वायु, जल, धरती, ध्वनि आदि से युक्त पूरा प्राकृतिक वातावरण आ जाता है।

आज हमारी सबसे बड़ी समस्या यही है कि जिस पर्यावरण में हमारा जीवन पलता है, वही प्रदूषित होता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है-अंधाधुध वैज्ञानिक प्रगति। अधिक उत्पादन की होड़ में हमने अत्यधिक कल-कारखाने लगा लिए हैं। उनके द्वारा उत्पादित रासायनिक कचरा, गंदा जल, और मशीनों से उत्पन्न शोर हमारे पर्यावरण के लिए खतरा बन गए हैं। परमाणु ऊर्जा के प्रयोग ने आकाश में व्याप्त ओजोन गैस की परत में छेद कर दिया है।

प्रदूषण बढ़ने का दूसरा बड़ा कारण है-जनसंख्या-विस्फोट । अत्यधिक जनसंख्या को अन्न-जल-स्थल देने के लिए वनों का काटना आवश्यक हो गया। इससे भी पर्यावरण का संतुलन बिगड़ा।

प्रदूषण के अनेक प्रकार हैं। उनमें कुछ मुख्य प्रदूषण इस प्रकार हैं –

आज महानगरों की वायु पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है। तेल से चलने वाले वाहनों और बड़े-बड़े उद्योगों के कारण वायु में विषैले तत्त्व घुल गए हैं। फैक्टरियों से निकले दूषित कचरे के कारण न केवल नदी-नाले प्रदूषित हुए हैं, बल्कि भूमिगत जल भी दूषित होने लगा है। जिन क्षेत्रों में फैक्टरियाँ अधिक हैं, वहाँ प्रायः धरती से लाल-काला जल बाहर निकलता है। आज फैक्टरियों, मशीनों, ध्वनि विस्तारकों, वाहनों और आनंद-उत्सवों में इतना अधिक शोर होने लगा है कि लोग बहरे होने लगे हैं। शोर तनाव को भी बढ़ाता है।

प्रदूषण की रोकथाम का उपाय लोगों के हाथ में है। इसे जनचेतना से रोका जा सकता है। यद्यपि सरकारें भी जनहित में अनेक उपाय कर रही हैं। हरियाली को बढावा देना, वृक्ष उगाना, प्रदूषित जल और मल का उचित संसाधन करना, शोर पर नियंत्रण करना-ये उपाय सरकार और जनता दोनों को अपनाना चाहिए। हर व्यक्ति इन प्रदूषणों को रोकने की ठान ले, तभी इसका निवारण संभव है।

वसंत ऋतु

ऋतुएँ तो अनेक हैं लेकिन वसंत की सज-धज निराली है। इसीलिए वह ऋतुओं का राजा, शायरों-कवियों का लाड़ला, धरती का धन है। वस्तुतः इस ऋतु में प्रकृति पूरे निखार पर होती है।

वसन्त ऋतु का प्रारंभ वंसत पंचमी से ही मान लिया गया है, लेकिन चैत और बैशाख ही वसन्त ऋतु के महीने हैं। वसन्त ऋतु का समय समशीतोष्ण जलवायु का होता है। चिल्ला जाड़ा और शरीर को झुलसाने वाली गर्मी के बीच वसन्त का समय होता है।

वसन्त के आगमन के साथ ही प्रकृति अपना श्रृंगार करने लगती है। लताएँ मचलने लगती हैं और वृक्ष फूलों-फलों से लद जाते हैं। दक्षिण दिशा से आती मदमाती बयार बहने लगती है। आम की मँजरियों की सुगन्ध वायुमंडल को सुगन्धित कर देती है। मस्त कोयल बागों में कूकने लगती है। सरसों के पीले फूल खिल उठते हैं और उनकी भीनी-भीनी तैलाक्त गन्ध सर्वत्र छा जाती है। तन-मन में मस्ती भर जाती है। हिन्दी, संस्कृत तथा अंग्रेज कवियों ने वसंत का मनोरम वर्णन किया है।

स्वास्थ्य की दृष्टि से भी वसन्त ऋतु का महत्त्व बहुत अधिक है। न अधिक जाड़ा पड़ता है, न गर्मी। गुलाबी जाड़ा, गुलाबी धूप। जो मनुष्य आहार-विहार को संयमित रखता है, उसे वर्षभर किसी प्रकार का रोग नहीं होता है। इस ऋतु में शरीर में नये खून का संचार होता है। वात और पित्त का प्रकोप भी शांत हो जाता है। इस प्रकार, इस ऋतु में स्वास्थ्य और शारीरिक सौंदर्य की भी वृद्धि होती है।

सबसे बड़ी बात तो यह होती है कि इस समय फसल खेतों से कटकर खलिहानों में आ जाती है। लोग निश्चित हो जाते हैं और, यह निश्चितता उन्हें खुशी से भर देती है। लोग ढोल-झाल लेकर बैठ जाते हैं होली के गीत उनके गले से निकलकर हवा में तैरने लगते हैं-होली खेलत नन्दलाल, बिरज में… होली खेलत नन्दलाल। वसंत उमंग, नन्द, काव्य, संगीत और सौंदर्य की ऋतु है। यह स्नेह और सौंदर्य का पाठ पढ़ाता है।यही कारण है कि सारी दुनिया में वसन्त की व्याकुलता से प्रतीक्षा होती है।

दीपावली 

मनुष्य के जीवन में सामान्य और विशेष दो प्रकार के कार्य होते हैं। सामान्य कार्य और सामान्य दिन बराबर होते हैं, किंतु विशेष कार्य और विशेष दिन अपने नियत समय पर आते हैं और उनका विशेष महत्त्व होता है। त्योहारों का महत्त्व इसलिए है कि उनमें अनेक विशेषताएँ होती हैं तथा वे विशेष समय पर आते हैं।

दीपावली के एक दिन पहले नरक-चौदस होती है और इस दिन घरों का कूड़ा-करकट सब फेंककर उनकी लिपाई-पुताई करते हैं। दीपावली के दिन सबके घर लिपे-पुते, साफ-सुथरे दिखाई पड़ने लगते हैं। यह भी कहा जाता है कि इसी तिथि को महाराजा रामचंद्र ने लंका विजय करके अयोध्या में पदार्पण किया था। उनके आगमन के उपलक्ष्य में उस समय अयोध्या नगर में दीपमालिका मनायी गयी। उसी घटना की • स्मृति में आज भी दीपावली मनायी जाती है।

यह वैश्यों का त्योहार विशेष रूप से इसलिए भी माना जाता है कि वैश्य-वर्ग का कार्य था- कृषि और व्यवसाय। कृषि-कार्य इस समय समाप्त-सा माना जाता है, क्योंकि खरीफ, भदई का काम पूरा हो चुका होता है। रबी की बुआई समाप्त हो चुकी होती है। व्यवसायियों को नये माल के लिए बाहर जाना पड़ता है तथा कृषकों से उनके माल की ढुलाई में सहायता मिलती है, क्योंकि वे खाली रहते हैं। कतिपय किसान कुछ थोड़ा-बहुत व्यवसाय भी करते हैं। इस त्योहार को मनाकर सभी अपने कार्य में लग जाते हैं। प्राचीन काल में भारत में प्रकृति-पूजा की परिपाटी अधिक थी। लक्ष्मीजी संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती थी। अतः उनकी पूजा उत्साह से की जाती थी। अब भी व्यवसायी वर्ग लक्ष्मी-पूजन उत्साह से करता है। वर्षा की नयी तथा विभिन्न प्रकार की गंदगियाँ साफ कर दी जाती हैं और समाज नयी स्फूर्ति से काम प्रारंभ करता है। दीपावली हिंदू संस्कृति.का सोल्लासपूर्ण त्योहार है।

महंगाई

पिछले दो दशकों से महँगाई द्रौपदी के चीर की तरह निरंतर बढ़ती जा रही है। विभिन्न वस्तुओं के मूल्य में अप्रत्याशित वृद्धि को देखकर आश्चर्य होता है। निरंतर बढ़ती हुई महँगाई भारत जैसे विकासशील देश के लिए निश्चित ही भयानक अभिशाप कहा जा सकता है।

बढ़ती हुई महँगाई का सर्वाधिक मुख्य कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है। पिछले 50 वर्षों में हमारे देश की जनसंख्या लगभग तीन गुनी हो गई है। जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात से विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई। जैसे-जैसे जनसंख्या बढ़ती है, वैसे-वैसे विभिन्न वस्तुओं की माँग में वृद्धि होती है। माँग के अनुपात में यदि वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि नहीं होती, तो महँगाई का बढ़ना स्वाभाविक ही है। हमारे देश में निरंतर बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार भी मूल्य वृद्धि का एक मुख्य कारण है। पुल, सड़कें और इमारतें बनने के कुछ समय बाद ही खंडहर बन जाते हैं। इन्हें पुनः निर्मित करने में पर्याप्त धनराशि व्यय होती है।

महँगाई पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार को कठोर कदम उठाना चाहिए तथा जनता को भी सादगीपूर्ण जीवन-शैली में निष्ठा रखनी चाहिए। इसके अतिरिक्त आवश्यक पदार्थों के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि होनी चाहिए। चुनाव वगैरह के नाम पर पैसों का अपव्यय न हो, यह ध्यान देना आवश्यक होगा।

Hindi Nibandh Class 10th – Conclusion 

अतः इस आर्टिकल लेख के माध्यम से मैट्रिक बोर्ड परीक्षा 2024 के लिए 10 महत्वपूर्ण निबंध बताया हूं। जो की बहुत ही महत्पूर्ण गैस प्रश्न हैं इसलिए आप सभी इन सभी निबध को अच्छे से याद कर लेना और बार बार लिखे का अभ्यास करना।

Hindi Nibandh For Class 10 ~ Some Important Link 

Hindi Nibandh Pdf Download Click Here
Class 12th Hindi Nibandh 2025 Click Here
Class 10th Hindi Nibandh 2025 Click Here

FAQ – 

Q. हिंदी में कौन सा निबंध आएगा 2024 class 10

Answer – कक्षा 10वीं निबंध में ये 10 निबंध में से कोई भी निबंध पूछ सकते है। जैसे – प्रदूषण / प्रदूषण की समस्या तथा समाधान, खेल का महत्व, दशहरा / विजय दशमीं / दुर्गा पूजा, मेरे प्रिय कवि / लेखक, छात्र और राजनीति, अनुशासन, पर्यावरण, वसंत ऋतु, दीपावली, महंगाई

Q. हिंदी में कौन सा निबंध आएगा 2024 class 12th

Answer – कक्षा 12वीं बोर्ड परीक्षा 2024 में ये 15 निबंध में से कोई भी निबंध आ सकता हैं। जैसे – Click Hare

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1 thought on “Hindi Nibandh For Class 10: हिंदी निबंध 10वी 2024 बोर्ड परीक्षा में ये 10 निबंध पूछा जाएगा।”

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