Class 10th History Chapter 2 Notes In Hindi: इस आर्टिकल लेख के माध्यम से क्लास 10 हिस्ट्री चैप्टर 2 का नोट्स और ऑब्जेक्टिव सब्जेक्टिव प्रश्न कराया गया है।
यदि आप कक्षा 10वीं में पढ़ रहे है तो आपके लिए यह आर्टिकल बहुत महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि इस आर्टिकल लेख के माध्यम से Class 10 History Chapter 2 Notes & Question Answer कराया गया है, जो की बहुत महत्वपूर्ण है, आपके एग्जाम के लिए।
Class 10th History Chapter 2 Notes In Hindi ~ Overall
Textbook | NCERT |
Class | Class 10th |
Subject | History |
Chapter Name | 2. समाजवाद, साम्यवाद, और रूसी क्रांति |
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Class 10th History Chapter 2 – One Short Notes
महत्वपूर्ण तथ्य –
☞ रूस की राज्यक्रांति के कारण : 1. निरंकुश एवं अत्याचारी शासन, 2. किसानों की दयनीय स्थिति, 3. किसानों का विद्रोह, 4. रूस की राजनीतिक मर्यादा को आघात, 5. कारखानों के मजदूरों की खराब स्थिति, 6. औद्यौगिकीकरण की समस्या, 7. रूसीकरण की नीति, 8. जार निकोलस द्वितीय और रानी जरीना की अयोग्यता, 9. सुधार आंदोलन, 10. मार्क्सवादी विचारधारा का अभाव, 11. रूस में बौद्धिक जागरण, 12. 1905 की क्रांति, 13. प्रथम विश्वयुद्ध में रू स की पराजय, 14. 1917 की फरवरी क्रांति, 15. पेट्रोग्राद की क्रांति, 14. अस्थायी सरकार का पतन।
☞ बोल्शेविक क्रांति : मार्च 1917 में रूस में प्रथम क्रांति हुई जिसके 6 महीने बाद ही अक्टूबर 1917 में दूसरी क्रांति हुई और बोल्शेविकों के नेता लेनिन के नेतृत्व में रूस में गणतंत्र की स्थापना हुई, तथा प्रथम साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई।
☞ क्रांति के परिणाम तथा क्रांति का रूस पर प्रभाव : 1. स्वेच्छाचारी शासन का अंत और लोकतंत्र की स्थापना, 2. सदियों से शोषित सर्वहारा वर्ग को अधिकार और सत्ता. 3. नई शासन-व्यवस्था की स्थापना, 4. नए प्रकार की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की स्थापना, 5. धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना, 6. गैर-रूसी राष्ट्रों का विलयन, 7. सभी जातियों को समानता का अधिकार, 8. रूसीकरण की नीति का परित्याग।
☞ क्रांति का विश्व पर प्रभाव : 1. रूस की क्रांति का विश्वव्यापी प्रभाव पड़ा। 2. रूस में साम्यवादी शासन की स्थापना के बाद विश्व के अन्य देशों: चीन, वियतनाम आदि में साम्यवादी सरकारें बनीं। 3. पूँजीवादी राष्ट्रों में आर्थिक सुधार के प्रयास होने लगे। 4. अंतर-राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन मिला। 5. साम्राज्यवाद के पतन की प्रक्रिया तीव्र, 6. नए शक्ति-संतुलन की स्थापना हुई।
☞ लेनिन का जन्म 10 अप्रैल 1870 को हुआ तथा उसकी मृत्यु 21 जनवरी को 1924 को LAY हुई।
☞ लेनिन और रूस का नवनिर्माण : रूस के नवनिर्माण में लेनिन का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
☞ लेनिन के महत्वपूर्ण आंतरिक कार्य : 1. युद्ध की समाप्ति, 2. नारियों की स्थिति में सुधार, 3. आर्थिक व्यवस्था में सुधार 4. शिक्षा में सुधार, 5. सामाजिक सुधार, 6. धार्मिक स्वतंत्रता, 7. आंतरिक शत्रुओं का दमन, 8. नए संविधान का निर्माण, 9. वैधानिक व्यवस्थाएँ।
☞ लेनिन की विदेश नीति : 1. मित्रतापूर्ण वैदेशिक नीति, 2. गुप्त संधियों की समाप्ति, 3. राष्ट्रीयता का सिद्धांत, 4. साम्राज्यवाद-विरोधी नीति, 5. कौमिण्टर्न की स्थापना।
☞ रूस में 22 जनवरी (पुराने कैलेंडर में 9 जनवरी), 1905 को खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।
☞ नई आर्थिक नीति का मुख्य उद्देश्य उपज बढ़ाना था।
☞ 1917 की क्रांति के समय रूस में रोमानोव राजवंश का शासन था।
☞ 1904-05 में रूस का जापान के साथ युद्ध हुआ।
☞ लाल सेना का गठन ट्राटस्की ने किया था।
Class 10th History Chapter 2 Question Answer
कक्षा 10वीं इतिहास अध्याय 2 का सारे प्रश्न एवं उत्तर नीचे दिया गया हैं, इसलिए आप सभी ध्यान पूर्वक पढ़े…एवं याद करें। क्योंकि यहां से आपके बोर्ड परीक्षा में बहुत सारा प्रश्न पूछा जाता हैं।
Class 10 History Chapter 2 Objective Question Answer In Hindi
क्लास 10 हिस्ट्री ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन आंसर (Class 10 History Chapter 2 Objective Question Answer ) नीचे ऑप्शन के साथ दिया गया है, अतः आप सभी नीचे दिए गए सभी प्रश्नों का आंसर याद करें….
Class 10 History Chapter 2 Subjective Questions Answer
दोस्तों, नीचे हिस्ट्री क्लास 10 चैप्टर 2 के सभी अतिलघु उत्तरीय, लघु उत्तरीय तथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उसका उत्तर दिया गया है।
Class 10 History Chapter 2 One Linear Subjective Questions Answer
प्रश्न 1. पूँजीवाद क्या है ?
उत्तर – पूँजीवाद से तात्पर्य ऐसी अर्थव्यवस्था से है जिसमें उत्पादन के साधन पर व्यक्तिगत स्वामित्व होता है। इसका उद्देश्य लाभार्जन है। वस्तुओं और सेवाओं की कीमत बाजार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।
प्रश्न 2. खूनी रविवार क्या है ?
उत्तर – 1905 ई० के एतिहासिक रूस-जापान युद्ध में रूस बुरी तरह पराजित हुआ । इस पराजय के कारण 1905 ई० में रूस में क्रांति हो गई। 9 फरवरी, 1905 ई० को लोगों का समूह “रोटी दो” के नारे के साथ सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए सेंट पीटर्सबर्ग स्थित महल की ओर जा रहा था। परन्तु जार की सेना ने इस निहत्थे लोगों पर गोलियाँ बरसायीं जिसमें हजारों लोग मारे गए, उस दिन रविवार था इसलिए उस तिथि को खूनी रविवार (लाल रविवार) के नाम से जाना जाता है ।
प्रश्न 3. अक्टूबर क्रांति क्या है ?
उत्तर – लेनिन ने बल प्रयोग द्वारा केरेन्सकी सरकार को पलट देने का निश्चय किया । सेना और जनता दोनों ने साथ दिया । 7 नवम्बर 1917 ई० को बोल्शेविक ने पेट्रोग्राड के रेलवे स्टेशन, बैंक, डाकघर, टेलीफोन केन्द्र, कचहरी, अन्य सरकारी भवनों पर अधिकार लिया । करेन्सकी रूस छोड़कर भाग गया । इस प्रकार रूस की महान नवंबर क्रांति (जिसे अक्टूबर क्रांति भी कहते हैं) सम्पन्न हुई । अब शासन की बागडोर लेनिन के हाथों में आ गई ।
प्रश्न 4. सर्वहारा वर्ग किसे कहते हैं ?
उत्तर – समाज का वैसा वर्ग जिसमें किसान, मजदूर और आम गरीब लोग शामिल हो, सर्वहारा वर्ग के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 5. क्रांति से पूर्व रूसो किसानों की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर – रूस में जनसंख्या का बहुसंख्यक भाग कृषक थे, जिनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय थी । 1861 ई० में जार अलक्जेंडर द्वितीय के द्वारा कृषि दासता समाप्त कर दी गई थी परंतु इससे किसानों को स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ था। उनके खेत बहुत छोटे-छोटे थे जिनपर परम्परागत कोण से खेती करते थे। उनके पास पूँजी की कमी थी तथा करों के बोझ से वे दबे थे। ऐसे में किसानों के पास क्रांति के सिवा कोई चारा नहीं था।
Class 12th History Chapter 2 Shorts Subjective Question Answer
प्रश्न 1. रूसी क्रांति के किन्हीं दो कारणों का वर्णन करें ।
उत्तर – रूसी क्रांति के दो कारण निम्नलिखित थे :
(i) जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन-1917 ई० से पूर्व रूस में निरंकुश जारशाही व्यवस्था कायम थी। राजतंत्र अपना विशेषाधिकार छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। जार निकोलस-II, जिसके शासन काल में क्रांति हुई, राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास करता था । उसे आम लोगों की सुख-दुख की कतई चिंता नहीं थी। जार ने जो अफसरशाही व्यवस्था बनायी थी वह अस्थिर, जड़ और अकुशल थी ।
(ii) मजदूरों की दयनीय स्थिति-रूस में मजदूरों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। उन्हें काम अधिक करना पड़ता था। उनकी मजदूरी काफी कम थी। उसके पास कोई राजनीतिक अधिकार नहीं थे । अतः वे तत्कालीन व्यवस्था से असंतुष्ट थे ।
प्रश्न 2. रूसीकरण की नीति क्रांति हेतु कहाँ तक उत्तरदायी थी ?
उत्तर – सोवियत रूस विभिन्न राष्ट्रीयता का देश था। यहाँ मुख्यतः स्लाव जाति के लोग रहते थे । इनके अतिरिक्त फिन, पोल, जर्मन, यहूदी आदि अन्य जातियों के लोग भी थे । ये भिन्न-भिन्न भाषा बोलते थे तथा उनका रस्म-रिवाज भी भिन्न-भिन्न था। परंतु रूस के अल्पसंख्यक समूह जार निकोलस द्वितीय द्वारा जारी की गई रूसीकरण की नीति से परेशान था । इसके अनुसार जार ने देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया । इससे अल्पसंख्यकों में हलचल मच गई और सत्ता के खिलाफ असंतोष फैला ।
प्रश्न 3. साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था थी, कैसे ?
उत्तर – 1917 ई० से पूर्व रूस में राजतंत्रीय शासन स्थापित था । रूस के सम्राट को जार कहा जाता था । जारशाही शासन निरंकुशता का प्रतीक था। किसानों, मजदूरों और सामान्य लोगों का जीवन अत्यन्त ही दयनीय था। अतः 1917 ई० में लेनिन के नेतृत्व में साम्यवादी क्रांति हुई जिसमें सत्ता की बागडोर सर्वहारा (अर्थात कृषक, मजदूर और जनसामान्य) के हाथों में आ गई। उत्पादन पर अब प्रे समाज का अधिकार हो गया। अतः हम कह सकते हैं कि साम्यवाद एक नई आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था थी ।
प्रश्न 4. नई आर्थिक नीति मार्क्सवादी सिद्धान्तों के बीच समझौता था, कैसे ?
उत्तर – लेनिन एक कुशल सामाजिक चिंतक तथा व्यावहारिक राजनीतिज्ञ था । उसने यह स्पष्ट देखा कि तत्काल पूरी तरह समाजवादी व्यवस्था लागू करना या एक साथ सारी पूँजीवादी दुनिया से टकराना संभव नहीं है जैसा कि ट्राटस्की चाहता था। इसलिए 1921 ई० में उसने एक नई नीति की घोषणा की जिसमें मार्क्सवादी मूल्यों से कुछ हद तक समझौता करना पड़ा। लेकिन वास्तव में पिछले अनुभवों से सीखकर व्यावहारिक कदम उठाना ही इस नीति का लक्ष्य था। किसानों से अनाज लेने के स्थान पर एक निश्चित कर लगाया गया । जमीन पर किसानों का हक कायम रहने दिया गया । विदेशी पूँजी भी सीमित मात्रा में आमंत्रित की गई। ट्रेड यूनियन की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई।
प्रश्न 5. प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय क्रांति हेतु मार्ग प्रशस्त किया कैसे ?
उत्तर – प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 ई० तक चला। इस युद्ध में रूस भी मित्र राष्ट्रों की ओर से शामिल हुआ था। इस युद्ध में सम्मिलित होने का एक मात्र उद्देश्य था कि रूसी जनता आंतरिक असंतोष भूलकर बाहरी मामलों में उलझ जाए । परन्तु इस युद्ध में चारों तरफ रूसी सेनाओं की हार हो रही थी, न उनके पास अच्छे हथियार थे और न ही पर्याप्त भोजन की सुविधा थी । युद्ध के मध्य जार ने सेना का कमान अपने हाथों में ले लिया परिणामस्वरूप दरबार खाली हो गया तथा उसकी अनुपस्थिति में जरीना और उसके तथाकथित गुरु रासपुटिन (पादरी) को षड्यंत्र करने का मौका मिल गया, जिसके कारण राजतंत्र की प्रतिष्ठा गिर गई । अतः हम कह सकते हैं कि प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय ने क्रांति हेतु मार्ग प्रशस्त किया ।
Class 12th History Chapter 2 Long Subjective Question Answer
प्रश्न 1. रूसी क्रांति के कारणों की विवेचना करें ।
उत्तर – रूसी क्रांति के निम्नलिखित कारण थे :
(i) जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन-क्रांति से पूर्व रूस में जारशाही शासन कायम थी जो निरंकुश एवं अकुशल थी। जार निकोलस II एक स्वेच्छाचारी शासक था । आमलोगों की स्थिति चिंताजनक थी जिसके कारण रूस में क्रांति का श्रीगणेश हुआ ।
(ii) मजदूरों की दयनीय स्थिति-रूस में मजदूरों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। उन्हें अधिक काम करना पड़ता था किंतु उनकी मजदूरी काफी कम थी। मजदूरों को कोई राजनीतिक अधिकार नहीं थे ।
(iii) कृषकों की दयनीय स्थिति-रूस की बहुसंख्यक जनसंख्या कृषक थी जिनकी स्थिति अत्यन्त ही दयनीय थी। कृषकों के पास पूँजी का अभाव था तथा करों के बोझ से वे दबे हुए थे। किसानों के पास क्रांति के सिवा कोई चारा नहीं था ।
(iv) औद्योगीकरण की समस्या-रूसी औद्योगीकरण पश्चिमी पूँजीवादी औद्योगीकरण से भिन्न था। यहाँ कुछ ही क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उद्योगों का केन्द्रण था । यहाँ राष्ट्रीय पूँजी का अभाव था । अतः उद्योगों के विकास के लिए विदेशी पूँजी पर निर्भरता बढ़ गयी थी । विदेशी पूँजीपति आर्थिक शोषण को बढ़ावा दे रहे थे। अतः चारों ओर असंतोष व्याप्त था ।
(v) रूसीकरण की नीति-जार निकोलस द्वितीय द्वारा जारी की गई रूसीकरण की नीति से रूस में अल्पसंख्यक समूह परेशान थे। जार ने देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया। इससे अल्पसंख्यकों में असंतोष की भावना फैली ।
(vi) विदेशी घटनाओं का प्रभाव-रूस की क्रांति में विदेशी घटनाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी । सर्वप्रथम क्रीमिया के युद्ध में रूस की पराजय ने उस देश में सुधार का युग आरंभ किया । तत्पश्चात् 1904-5 ई० के रूस-जापान युद्ध ने रूस में पहली क्रांति को जन्म दिया और अन्ततः प्रथम विश्व युद्ध ने बोल्शेविक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया ।
(vii) रूस में मार्क्सवाद तथा बुद्धिजीवियों का योगदान-रूस में क्रांति के पूर्व एक वैचारिक क्रांति भी देखी जा सकती थी । लियो टॉलस्टाय (वार एण्ड पीस), दोस्तोवस्की, तुर्गनेव जैसे चिंतक इस नए विचार को प्रोत्साहन दे रहे थे। रूस के औद्योगिक मजदूरों पर कार्ल मार्क्स के समाजवादी विचारों का पूर्ण प्रभाव था। मार्क्सवाद एक नशा की तरह रूस में छा गया और अन्ततः 1917 ई० की बोल्शेविक क्रांति हुई ।
(viii) तात्कालिक कारण प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय-प्रथम विश्व युद्ध 1914 ई० से 1918 ई० तक चला। इस युद्ध में रूस मित्र राष्ट्रों की ओर से शामिल हुआ था रूसी सेना के पास न तो आधुनिक हथियार था न ही पर्याप्त मात्रा में रसद । जार सेना का कमान अपने हाथों में ले लिया था जिससे दरबार में उसकी अनुपस्थिति में जरीना और पादरी (रासपुटिन) को षड्यंत्र करने का मौका मिल गया, जिसके कारण राजतंत्र की प्रतिष्ठा और भी गिर गई उपर्युक्त कारणों के परिप्रेक्ष्य में रूस में 1917 ई० की बोल्शेविक क्रांति हुई ।
प्रश्न 2. नई आर्थिक नीति क्या है ?
उत्तर – लेनिन ने 1921 ई० में एक नई नीति की घोषणा की जिसमें मार्क्सवाद के मूल्यों कुछ हद तक समझौता करना पड़ा। नई आर्थिक नीति में निम्नलिखित प्रमुख बातें थीं –
(i) किसानों से अनाज लेने के स्थान पर एक निश्चित कर लगाया गया । बचा हुआ अनाज किसान का था, वह उसका मनचाहा इस्तेमाल कर सकता था ।
(ii) यद्यपि यह सिद्धान्त में कायम रखा गया कि जमीन राज्य की है फिर भी व्यवहार में जमीन किसान की हो गई ।
(iii) 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को व्यक्तिगत रूप से चलाने का अधिकार मिल गया ।
(iv) उद्योगों का विकेन्द्रीकरण किया गया ।
(v) विभिन्न स्तरों पर बैंक की स्थापना की गई ।
(vi) विदेशी पूँजी को भी सीमित तौर पर आमंत्रित की गई ।
(vii) व्यक्तिगत सम्पत्ति और जीवन की बीमा भी राजकीय एजेंसी द्वारा शुरू किया गया।
(viii) ट्रेड यूनियन की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई । नई आर्थिक नीति के द्वारा लेनिन ने उत्पादन की कमी को नियंत्रित किया । इसक परिणामस्वरूप कृषि एवं औद्योगिक उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई ।
प्रश्न 3. रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना कर ।
उत्तर – रूसी क्रांति के प्रभाव :
(i) इस क्रांति के पश्चात् श्रमिक अथवा सर्वहारा वर्ग की सत्ता रूस में स्थापित हो गई तथा इसने अन्य क्षेत्रों में भी आंदोलन को प्रोत्साहन दिया ।
(ii) रूसी क्रांति के बाद विश्व विचारधारा के स्तर पर दो खेमों में विभाजित हो गया
साम्यवादी विश्व एवं पूँजीवादी विश्व । इसके पश्चात् यूरोप भी दो भागों में विभाजित हो गया पूर्वी यूरोप और पश्चिमी यूरोप ।
(iii) द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् पूँजीवादी विश्व तथा सोवियत रूस के बीच शीतयुद्ध की शुरूआत हुई और आगामी चार दशकों तक दोनों खेमों के बीच हथियारों की होड़ जारी रही ।
(iv) रूसी क्रांति के पश्चात् आर्थिक आयोजन के रूप में एक नीवन आर्थिक मॉडल आया । आगे पूँजीवादी देशों ने भी परिवर्तित रूप में इस मॉडल को अपनाया ।
(v) इसकी सफलता ने एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश मुक्ति को भी प्रोत्साहन दिया ।
प्रश्न 4. कार्ल मार्क्स की जीवनी एवं सिद्धान्त का वर्णन करें ।
उत्तर-कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 ई० को जर्मनी में राइन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था। उनके पिता हेनरिक मार्क्स एक प्रसिद्ध वकील थे जिन्होंने बाद में चलकर ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था। मार्क्स ने बोन विश्वविद्यालय में विधि की शिक्षा ग्रहण की परन्तु 1836 ई० में वे बर्लिन विश्वविद्यालय चले आए जहाँ उनके जीवन को नया मोड़ मिला । मार्क्स हीगल के विचारों से प्रभावित था । 1843 ई० में उसने बचपन की मित्र हेनी से विवाह किया । कार्ल मार्क्स की मुलाकात पेरिस में 1844 ई० में फ्रेडरिक एंजेल्स से हुई जिनसे जीवन भर उनकी गहरी मित्रता बनी रही। मार्क्स ने एंजेल्स के साथ मिलकर 1848 ई० में एक साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया जिसे आधुनिक समाजवाद का जनक कहा जाता है। उपर्युक्त घोषणा पत्र में मार्क्स ने अपने आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है। मार्क्स ने 1867 ई० में ‘दास कैपिटल’ नामक पुस्तक की रचना की, जिसे “समाजवादियों की बाइबिल” कहा जाता है।
मार्क्स के सिद्धान्त :
1. द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धान्त
2. वर्ग-संघर्ष का सिद्धान्त
3. इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या
4. मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त
5. राज्यहीन एवं वर्गहीन समाज की स्थापना
ऐतिहासिक भौतिकवाद-कार्ल मार्क्स के द्वारा इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या प्रस्तुत की गई। उसने कहा कि इतिहास उत्पादन के साधन पर नियंत्रण के लिए दो वर्गों के बीच चल रहे निरन्तर संघर्ष की कहानी है। उसके अनुसार इतिहास की प्रत्येक घटना एवं परिवर्तन के मूल में आर्थिक शक्तियाँ हैं। कार्ल मार्क्स के अनुसार इतिहास के निम्नलिखित चरण हैं-
(i) आदिम साम्यवादी युग (Age of Primitive Communism)
(ii) दासता का युग (Slave age)
(iii) सामन्ती युग (Feudual age)
(iv) पूँजीवादी युग (Capitalist age)
(v) समाजवादी युग (Socialistic age)
(vi) साम्यवादी युग (Cummunist age)
प्रश्न 5. यूरोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन करें ।
उत्तर-प्रथम यूरोपियन (स्वप्नदर्शी) समाजवादी जिसने समाजवादी विचारधारा के विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, एक फ्रांसीसी विचारक सेंट साइमन था। उनका मानना था कि राज्य एवं समाज को इस ढंग से संगठित करना चाहिए कि लोग एक-दूसरे का शोषण करने के बदले मिलजुलकर प्रकृति का दोहन करे, समाज को निर्धन वर्ग के भौतिक एवं नैतिक उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए । उसने घोषित किया “प्रत्येक को उसकी क्षमता के अनुसार तथा प्रत्येक को उसके कार्य के अनुसार अवसर मिलना चाहिए” । आगे चलकर यही समाजवाद का नारा बन गया ।
एक अन्य महत्त्वपूर्ण यूरोपियन विचारक चार्ल्स फौरियर था। वह आधुनिक औद्योगिकवाद का विरोधी था तथा उसका मानना था कि श्रमिक को छोटे नगर अथवा कस्बों में काम करना चाहिए । उसने किसानों के लिए फ्लांग्स बनाए जाने की योजना रखी ।
फ्रांसीसी यूरोपियन चिंतकों में लुई ब्लां प्रमुख था। उसके सुधार कार्यक्रम अधिक व्यावहारिक थे। उसका मानना था कि आर्थिक सुधारों को प्रभावकारी बनाने के लिए पहल राजनीतिक सुधार आवश्यक है ।
फ्रांस से बाहर सबसे महत्त्वपूर्ण यूरोपियन चिंतक ब्रिटिश उद्योगपति रॉबर्ट ओवन था । उसन अपनी फैक्ट्री में श्रमिकों को अच्छी वैतनिक सुविधाएँ प्रदान की और फिर उसने ऐसा महसूस किया कि मुनाफा कम होने के बजाए और भी बढ़ गया । अतः वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि संतुष्ट श्रमिक ही वास्तविक श्रमिक है ।
Class 10th History Chapter 1 Notes In Hindi: यूरोप में राष्ट्रवाद नोट्स
Conclusion –
अतः इस आर्टिकल लेख के माध्यम से मैने आप सभी को Class 10 History Chapter 2 Notes In Hindi, Class 10 History Chapter 2 Question Answer, Class 10th History Chapter 2 Objective Question Answer, Class 10 History Chapter 2 Subjective Question Answer बताया हूं। उम्मीद करते है, आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा। धन्यवाद…
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